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ग़ज़ल
दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें
सर-ए-सलीब ईस्तादा होगा ख़ुदा-ए-इंजील चल के देखें
आफ़ताब इक़बाल शमीम
ग़ज़ल
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शहर-ए-शब में अपनी फ़क़त इक नज्म-ए-सहर से यारी थी
हम कुछ ऐसे सोए वो भी रफ़्ता रफ़्ता भूल गया
शाज़ तमकनत
ग़ज़ल
हम से जिस के तौर हों बाबा देखोगे दो एक ही और
कहने को तो शहर-ए-कराची बस्ती दिल-ज़दगाँ की है