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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मुर्ग़ान-ए-क़फ़स को फूलों ने ऐ 'शाद' ये कहला भेजा है
आ जाओ जो तुम को आना हो ऐसे में अभी शादाब हैं हम
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
नौ-गिरफ़्तार-ए-बला तर्ज़-ए-वफ़ा क्या जानें
कोई ना-शाद सिखा दे उन्हें नालाँ होना
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में
छोटी छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
इस हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ पे लुट कर भी शाद हूँ
तेरी रज़ा जो थी वो तक़ाज़ा वफ़ा का था