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ग़ज़ल
क्या हुई तक़्सीर हम से तू बता दे ऐ 'नज़ीर'
ताकि शादी-मर्ग समझें ऐसे मर जाने को हम
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कहीं है ईद की शादी कहीं मातम है मक़्तल में
कोई क़ातिल से मिलता है कोई बिस्मिल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
जहाँ में हो ग़म-ओ-शादी बहम हमें क्या काम
दिया है हम को ख़ुदा ने वो दिल कि शाद नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे
सुब्हा-ए-ज़ाहिद हुआ है ख़ंदा ज़ेर-ए-लब मुझे