आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "शायाँ"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "शायाँ"
ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ख़ुशी के वास्ते पैदा हुआ है कौन दुनिया में
मगर हम भी अहल-ए-दर्द के शायाँ नहीं होता
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
सब मुहय्या है जो इस हंगाम के शायाँ है शय
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
विर्द-ए-ज़बाँ है रोज़-ओ-शब इन की सना-ए-हुस्न
शायाँ है जिस क़दर कि ये शाएर ग़ुलू करें
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
चश्म-ए-ग़लत-अंदाज़ के शायाँ भी न ठहरे
जज़्ब-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ में असर कुछ भी नहीं क्या
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
जो तन्हा पास मंज़िल दिल को शायाँ है मोहब्बत में
तो आँखों को है लाज़िम दीदा-ए-हसरत-नगर होना
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
जो कूड़ा-दान को शायाँ है वो मेरी अदीबी है
ये पन्नी चड़-चड़ाती है मैं जब शम्अ' बढ़ाता हूँ
यूसुफ़ बिन मोहम्मद
ग़ज़ल
वो हो जो तेरी शान के शायाँ हो ऐ करीम
मैं क्या कहूँ ज़बाँ से कि अब क्या हो क्या न हो
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
छबकती शबनमीं आँखों में नज्म-ओ-गुल के अफ़्साने
नई करवट अभी शायद हमारी ख़ाक बदलेगी