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ग़ज़ल
सलाम मछली शहरी
ग़ज़ल
मैं गुल हूँ मैं बहाराँ मैं ही रंग-ओ-नूर और निकहत
निगाह-ए-दिल से देखूँ शाहकार-ए-गुलसिताँ मैं हूँ
अनवर सादिक़ी
ग़ज़ल
क़िस्मत की है ये बात कि बनता है किस से क्या
सब देखते हैं ख़्वाब किसी शाहकार का