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ग़ज़ल
सामने शाह-ए-वक़्त के 'असलम' कौन कहे ये बात
चोर न थे फ़नकार थे हम फिर काट लिए क्यूँ हात
असलम हनीफ़
ग़ज़ल
वो शाह-ए-वक़्त हैं जम्हूरियत के पर्दे में
ये तोहमतें हैं कि बा-इख़्तियार हैं हम लोग
सलमान ग़ाज़ी
ग़ज़ल
मुंसिफ़-ए-वक़्त हक़ीक़त है हक़ीक़त है ख़ुदा
ख़ौफ़ लाज़िम है बहर-तौर हर इक हल के लिए
सादुल्लाह शाह
ग़ज़ल
'ग़ुलाम'-ए-शाह-ए-फ़ाज़िल का कहे दिल सूँ सुनो यारो
देखा मैं शह मुहीउद्दीं मुझे फिर क्या दिखाना है
ग़ुलाम क़दीर शाह
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
हम फ़क़ीराना ग़ज़ल कहते हैं ऐ शाह-ए-जहाँ
ख़ैर हो ख़ैर हो मसरूफ़-ए-दुआ होते हैं
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
हर एक दर पे है गर्दिश में मेरा कासा-ए-चश्म
वो शाह-ए-हुस्न हुआ ये गदा मोहब्बत का