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ग़ज़ल
तू वो यकता-ए-मुतलक़ है कि यकताई में अब तेरी
कोई शिर्क-ए-दुई का हर्फ़ ला सकता है क्या क़ुदरत
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कुफ़्र शरमाता है जिन से झेंपता है जिन से शिर्क
मैं ने की हैं कैसी कैसी बिदअ'तें तेरे लिए
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
किब्र भी है शिर्क ऐ ज़ाहिद मुवह्हिद के हुज़ूर
ले के तेशा ख़ाकसारी का बुत-ए-पिंदार तोड़
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
नवाज़ असीमी
ग़ज़ल
कोई और बात ही कुफ़्र थी कोई और ज़िक्र ही शिर्क था
जो किसी से वादा-ए-दीद था तो तमाम शब ही वज़ू से थी
रज़ी अख़्तर शौक़
ग़ज़ल
शिर्क है शिर्क ये ऐ वाइ'ज़-ए-आशुफ़्ता-ख़याल
ग़म-ए-उक़्बा को शरीक-ए-ग़म-ए-दुनिया भी न कर
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
शिर्क तो ख़्वाब में भी हम से नहीं हो सकता
हम तो या-रब तिरी क़ुदरत पे भी शक करते हैं
मन्नान बिजनोरी
ग़ज़ल
शिर्क से ख़ाली किसी का न नज़र आया दिल
वो बड़े ज़र्फ़ हैं जिन में तू समाया तन्हा