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ग़ज़ल
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
जाने क्या क्या सोचता रहता है ये पागल मन साजन
ख़ुद को अक्सर तुझ में देखे तू मेरा दर्पन साजन