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ग़ज़ल
आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
रोज़ इन आँखों के सपने टूट जाते हैं तो क्या
रोज़ इन आँखों में फिर सपने सजाने चाहिएँ
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को
मिरा होना बुरा क्या है नवा-संजान-ए-गुलशन को