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ग़ज़ल
हिज्र के दरिया में तुम पढ़ना लहरों की तहरीरें भी
पानी की हर सत्र पे मैं कुछ दिल की बातें लिक्खूंगा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
न हो वहशत-कश-ए-दर्स-ए-सराब-ए-सत्र-ए-आगाही
मैं गर्द-ए-राह हूँ बे-मुद्दआ है पेच-ओ-ख़म मेरा
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मिरे दुख तक मिरे ख़ूँ और पसीने की कमाई हैं
तुम्हें क्यूँ मेरी मेहनत का समर अच्छा नहीं लगता