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ग़ज़ल
दिल-ए-मुज़्तर को आख़िर कौन समझाएगा ऐ 'राही'
सुकून-ए-क़ल्ब पाने में ज़रा सी देर लगती है
आदिल राही
ग़ज़ल
क्या इश्क़ है जब हो जाएगा तब बात समझ में आएगी
जब ज़ेहन को दिल समझाएगा तब बात समझ में आएगी
इफ़्तिख़ार राग़िब
ग़ज़ल
हम पे जो गुज़री हम जाने हैं कोई क्या समझाएगा
हम मिट के बर्बाद हुए जब तुम क्या दिल को टटोले हो
इरफ़ान अहमद मीर
ग़ज़ल
ऊँची नीची तिरछी टेढ़ी सब राहें जो देख चुका
कौन आ कर समझाएगा अब इस 'राजस' दीवाने को
बूटा ख़ान राजस
ग़ज़ल
पूरे क़द से मैं खड़ा हूँ सामने आएगा क्या
मैं तिरा साया नहीं हूँ मुझ को समझाएगा क्या
फ़ारूक़ नाज़की
ग़ज़ल
मोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है
जो दिल में है उसे आँखों से कहलाना ज़रूरी है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
अगर होता वो 'मजज़ूब'-ए-फ़रंगी इस ज़माने में
तो 'इक़बाल' उस को समझाता मक़ाम-ए-किबरिया क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जू-ए-ख़ूँ आँखों से बहने दो कि है शाम-ए-फ़िराक़
मैं ये समझूँगा कि शमएँ दो फ़रोज़ाँ हो गईं