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ग़ज़ल
सुनता नहीं वो वर्ना ये सरगोशी-ए-अग़्यार
क्या मुझ को गवारा है कि मैं कुछ नहीं कहता
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कह दो बक़्क़ाल पिसर से कि मिरा दिल ले कर
क़स्द-ए-अख़्ज़-ए-दिल-ए-अग़्यार न हाँ कीजिएगा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
ठहरा इज़हार-ए-वफ़ा शिकवा-ए-वस्ल-ए-अग़्यार
रश्क से हासिल-ए-तक़रीर उलट जाता है
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
माइल-ए-सोहबत-ए-अग़्यार तो हम हैं तुम कौन
क्यूँ बुरा मान गए यार तो हम हैं तुम कौन
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
वुफ़ूर-ए-सोहबत-ए-अग़्यार से कुछ ऐसे खुल खेले
न वो झेपें हज़ारों में न शरमाएँ करोरों में