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ग़ज़ल
सरापा हुस्न बन जाता है जिस के हुस्न का 'आशिक़
भला ऐ दिल हसीं ऐसा भी है कोई हसीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दिल मुजस्सम शेर-ओ-नग़्मा वो सरापा रंग-ओ-बू
क्या फ़ज़ाएँ हैं कि जिन में हल हुआ जाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
सरापा राज़ हूँ मैं क्या बताऊँ कौन हूँ क्या हूँ
समझता हूँ मगर दुनिया को समझाना नहीं आता