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ग़ज़ल
जब कश्ती साबित-ओ-सालिम थी साहिल की तमन्ना किस को थी
अब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर साहिल की तमन्ना कौन करे
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
जहान-ए-साबित-ओ-सय्यार था गर्द-ए-सफ़र मेरी
मिरे ज़ेर-ए-क़दम थी कहकशाँ कल शब जहाँ मैं था
नईम हामिद अली
ग़ज़ल
हर साबित-ओ-सय्यार की इक हद है मुक़र्रर
अफ़्लाक की वुसअ'त में भी दीवारें हैं दर है