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ग़ज़ल
ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी
जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
सफ़-ए-मिज़्गाँ की जुम्बिश का किया इक़बाल ने कुश्ता
शहीदों के हुए सालार जब हम से तुमन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
लूटा गया था कल जो सर-ए-राह क़ाफ़िला
उस क़ाफ़िले का क़ाफ़िला-सालार मैं ही हूँ