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ग़ज़ल
वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मिरी दुआ में असर न हो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
चश्म-ए-फ़ैज़ और दस्त वो पारस-सिफ़त जब छू गए
मुझ को मिट्टी से उठाया और फ़लक पर कर दिया
क़ैसर हयात
ग़ज़ल
पंजा है मिरा पंजा-ए-ख़ुर्शीद मैं हर सुब्ह
मैं शाना-सिफ़त साया-ए-रू ज़ुल्फ़-ए-बुताँ हूँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
शबीना अदीब
ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
सिफ़त-ए-बर्क़ चमकता है मिरा फ़िक्र-ए-बुलंद
कि भटकते न फिरें ज़ुल्मत-ए-शब में राही
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
भला मख़्लूक़ ख़ालिक़ की सिफ़त समझे कहाँ क़ुदरत
उसी से नेति नेति ऐ यार दीदों ने पुकारा है