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ग़ज़ल
जाड़े की इस धूप ने देखो कैसा जादू फेर दिया
बेहद सब्ज़ दरख़्तों का भी रंग सुनहरा लगता है
प्रकाश फ़िक्री
ग़ज़ल
सुर्ख़ सुनहरा साफ़ा बाँधे शहज़ादा घोड़े से उतरा
काले ग़ार से कम्बल ओढ़े जोगी निकला रात हुई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
एलान सहर को होता है यूँ हुस्न की शाहंशाही का
गर्दूं पे सुनहरा इक परचम मशरिक़ की तरफ़ लहराता है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
दिन सुनहरा है तो अपने आप से मिल लो ज़रूर
शाम-ता-शब तो फ़क़त तकिया भिगोना चाहिए