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ग़ज़ल
वाक़ई यूँ तो ज़रा देखियो सुब्हान-अल्लाह
तेरे दिखलाने को हम चश्म ये नम करते हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
बे-इबादत न ख़ुदा बख़्शेगा सुब्हान-अल्लाह
ऐसी फ़िरदौस से हम गुज़रे कि मज़दूर नहीं
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
क्या दिल ओ दीदा भी हरकारे हैं सुब्हान-अल्लाह
लाख पर्दों में कोई हो ये ख़बर लाते हैं
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
बाग़-ए-हिज्राँ की बहारों के भी सुब्हान-अल्लाह
ज़ख़्म फूलों की तरह फूल हैं ज़ख़्मों की तरह
सादिया सफ़दर सादी
ग़ज़ल
वाह क्या सनअ'त-ए-ख़ालिक़ है ये सुब्हान-अल्लाह
अपनी सूरत में हर इंसान जुदा एक से एक
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
चेहरा उन का सुब्ह-ए-रौशन गेसू जैसे काली रात
बातें उन की सुब्हान-अल्लाह गोया क़ुरआँ की आयात