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ग़ज़ल
कुछ और गुमाँ दिल में न गुज़रे तिरे काफ़िर
दम इस लिए मैं सूरा-ए-यूसुफ़ नहीं करता
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
पता नहीं है जो इश्क़-ओ-हवस का फ़र्क़ तुझे
बताऊँ सूरा-ए-यूसुफ़ है किस सिपारे में
आसिफ़ रशीद असजद
ग़ज़ल
नज़्अ' में सूरा-ए-यूसुफ़ कोई लिल्लाह पढ़े
दम भी निकले तो मरूँ सुन के मैं अफ़्साना-ए-इश्क़
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
इन दिनों हज़रत-ए-यूसुफ़ की वो ना-क़दरी है
नहीं बुढ़िया भी ख़रीदार बुरी मुश्किल है
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
चलो अब तोड़ डालो आख़िरी रिश्ता भी हम से तुम
ये कह कर साथ 'यूसुफ़' को निभाना भी नहीं आता
वक़ास यूसुफ़
ग़ज़ल
देख ऐ चश्म-ए-ज़ुलेख़ा क़द्र अपने प्यार की
आज फिर यूसुफ़ के भाई हैं ख़रीदारों के साथ
यूसुफ़ ज़फ़र
ग़ज़ल
गुनाह क्या है जो दिल से अज़ीज़ रखते हैं
बने हो यूसुफ़-ए-सानी तो चाह करते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
वो धुआँ-धार सी ज़ुल्फ़ें हैं नज़र में हर शब
विर्द अब सूरा-ए-वल्लैल-ओ-दुख़ाँ कीजिएगा