aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सैल-ए-बला-ख़ेज़"
चलो ये सैल-ए-बला-ख़ेज़ ही बने अपनासफ़ीना उस का ख़ुदा उस का नाख़ुदा उस का
जिस तरह सैल-ए-बला-ख़ेज़ में बस्ती बह जाएउस तरह उस की उमीदों का नगर ख़त्म हुआ
वहशत-ए-शौक़ मुक़द्दर थी सो बचते कब तकअब तो ये सैल-ए-बला-ख़ेज़ जहाँ ले जाए
मैं अपने जिस्म के अंदर था आफ़ियत से मगरलहू के सैल-ए-बला-ख़ेज़ में ये घर भी गया
वक़्त-ए-सज्दा जो तिरे पाँव पे टपका था 'नदीम'क़तरा-ए-अश्क मिरा सैल-ए-बला-ख़ेज़ हुआ
सड़कों पर इक सैल-ए-बला था लोगों कामैं तन्हा था उस में क्या था लोगों का
मिसाल-ए-सैल-ए-बला न ठहरे हवा न ठहरेलगाए जाएँ हज़ार पहरे हवा न ठहरे
रक़्स यक नूर कभी सैल-ए-बला देखता हूँज़ेहन पर छाई हुई धुँद में क्या देखता हूँ
टूट गया हवा का ज़ोर सैल-ए-बला उतर गयासंग-ओ-कुलूख़ रह गए लहर गई भँवर गया
दिल अपना हरीफ़-ए-सैल-ए-बला अब क्या कहें कितना टूट गयाआज और थपेड़े टकराए आज और किनारा टूट गया
सैल-ए-बला-ए-ग़म न पूछ कितने घरौंदे ढह गएनाव तो ख़ैर नाव थी साथ किनारे बह गए
आतिश-ए-रंज-ओ-अलम सैल-ए-बला सामने हैपैकर-ए-ख़ाक में होने की सज़ा सामने है
मुद्दत हुई तूफ़ान-ए-बला-ख़ेज़ को गुज़रेकुछ लोग हैं अब तक जो निकलते नहीं घर से
कैसा इल्ज़ाम सर-ए-मौज-ए-बला-ख़ेज़ कि हमहो गए ग़र्क़ किनारों से किनारा करते
अंदेशा-ए-तूफ़ान-ए-बला-ख़ेज़ बहुत हैइस वास्ते हम क़तरे को दरिया नहीं करते
कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहींसैलानियों को ख़तरा-ए-सैल-ए-बला नहीं
जिस जा कि पा-ए-सैल-ए-बला दरमियाँ नहींदीवानगाँ को वाँ हवस-ए-ख़ानमाँ नहीं
रफ़्ता-ए-सैल-ए-बला हूँ ये मिरी आदत हैअपनी कश्ती किसी गिर्दाब में डाले रखना
लाख मुझे दोश पे सर चाहिएसैल-ए-बला को मिरा घर चाहिए
हम तो सैल-ए-बला की नज़्र हुएदूसरों को मगर बचाना है
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