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ग़ज़ल
बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है! चौका बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
जिस की सौंधी सौंधी ख़ुशबू आँगन आँगन पलती थी
उस मिट्टी का बोझ उठाते जिस्म की मिट्टी गलती थी
हम्माद नियाज़ी
ग़ज़ल
हर गोशा है महका-महका उस की सौंधी ख़ुशबू से
लगता है वो इन गलियों में अब तक आता जाता है
ज़ुल्फ़िक़ार ज़की
ग़ज़ल
जब पतझड़ का ज़ालिम गुलचीं फूल 'कँवल' का ले जाएगा
बरसों इस को याद करेगी इस गुलशन की सौंधी मिट्टी
कँवल डी. राज
ग़ज़ल
वो सीधी उल्टी इक इक मुँह में सौ सौ मुझ को कह जाना
दम-ए-बोसा वो तेरा रूठ जाना याद आता है
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
क्या बताऊँ मैं कि तुम ने किस को सौंपी है हया
इस लिए सोचा मिरी ख़ामोशियाँ ही ठीक हैं
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
मेरे अज्दाद ने सौंपी थी जो मुझ को 'रज़्मी'
नस्ल-ए-नौ को वो क़बा दे के चला जाऊँगा
मुज़फ़्फ़र रज़्मी
ग़ज़ल
कजी जिन की तबीअत में है कब होती वो सीधी है
कहो शाख़-ए-गुल-ए-तस्वीर से किस तरह ख़म निकले