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ग़ज़ल
क्या सोच के तुम ने सींची थी ये केसर क्यारी चाहत की
तुम जिन को हँसाने आए थे उन को न रुलाओ इंशा-जी
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
उन के हँसने पे न जा उन के हँसाने से न हँस
तेरे हँसने पे जो हँसते हैं हँसाने वाले