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ग़ज़ल
हमदर्दी हमदर्दी में जान ही ले कर टलते हैं
इन ज़ालिम हमदर्दों से जान छुड़ाना सहल नहीं
मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल
अपनी हर साँस पे एहसाँ लिए हमदर्दों का
ज़िंदगी जीता हूँ इस अहद में उर्दू की तरह
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
न कोहकन है न मजनूँ कि थे मिरे हमदर्द
मैं अपना दर्द-ए-मोहब्बत कहूँ तो किस से कहूँ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
नहीं मिलते हो मुझ से तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझ से जल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
बला से हो अगर सारा जहाँ उन की हिमायत पर
ख़ुदा-ए-हर-दो-आलम की हिमायत हम भी रखते हैं
जोश मलसियानी
ग़ज़ल
कहाँ तक मुझ से हमदर्दी कहाँ तक मेरी ग़म-ख़्वारी
हज़ारों ग़म हैं अनजाने सितारो तुम तो सो जाओ
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
हमदमो दिल के लगाने में कहो लगता है क्या
पर छुड़ाना इस का मुश्किल है लगाना सहल है