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ग़ज़ल
वो हर तूफ़ाँ जो हम-आग़ोश-ए-साहिल होता जाता है
हुसूल-ए-गौहर-ए-ताबाँ में हाइल होता जाता है
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
ख़ाक में मिल के हम-आग़ोश-ए-बक़ा हो जाना
ऐन हस्ती है मोहब्बत में फ़ना हो जाना
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
मर्ग-ए-उश्शाक़ नहीं ज़िंदा-ए-जावेद हुए
यार से होने हम-आग़ोश-ओ-बहम जाते हैं
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
मैं ख़्वाब में हुआ हूँ हम-आग़ोश-ए-गुल-बदन
क्या देखता हूँ सुब्ह को हैगा कनार सुर्ख़