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हम न वहशत के मारे मरते हैं

मुंतज़िर लखनवी

हम न वहशत के मारे मरते हैं

मुंतज़िर लखनवी

MORE BYमुंतज़िर लखनवी

    हम वहशत के मारे मरते हैं

    तेरी दहशत के मारे मरते हैं

    मार मत बे-मुरव्वती से उन्हें

    जो मुरव्वत के मारे मरते हैं

    शिकवा क्या कीजे शाम-ए-ग़ुर्बत का

    अपनी शामत के मारे मरते हैं

    क्या रक़ीबों को मारिए वो आप

    सब रक़ाबत के मारे मरते हैं

    यार से दूर हैं वतन से जुदा

    इस मुसीबत के मारे मरते हैं

    सैकड़ों उस से हैंगे हम-आग़ोश

    लाखों हसरत के मारे मरते हैं

    कुछ हमारी पूछिए साहब

    हम तो ग़ैरत के मारे मरते हैं

    है अजब ज़ीस्त 'मुंतज़िर' उन की

    जो कि उल्फ़त के मारे मरते हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : Ghazal Usne Chhedi(2) (पृष्ठ 142)
    • रचनाकार : Farhat Ehsas
    • प्रकाशन : Rekhta Books (2017)
    • संस्करण : 2017

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