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ग़ज़ल
आज जो इस बेदर्दी से हँसता है हमारी वहशत पर
इक दिन हम उस शहर को 'राही' रह रह कर याद आएँगे
राही मासूम रज़ा
ग़ज़ल
नियाज़-ओ-नाज़ की वो कशमकश भी अब कहाँ 'राही'
जिसे हम दिल समझते थे उसे भी मार बैठे हैं
राम प्रकाश राही
ग़ज़ल
थाम हवा का दामन 'राही' आओ हम भी लांघ चलें
लफ़्ज़ों के पुल बाँध रहे हैं कोह-ए-निदा से कोह-ए-निदा
राम प्रकाश राही
ग़ज़ल
आरज़ू की नगरी में ये हमीं समझते हैं
हम ने दिल को ऐ 'राही' किस तरह से बहलाया
राही हमीदी चाँदपुरी
ग़ज़ल
ये इम्तियाज़ भी कुछ कम नहीं है ऐ 'राही'
जो शय भी रखते हैं हम बे-मिसाल रखते हैं