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ग़ज़ल
रंज-ओ-ग़म-ए-हयात का 'उनवाँ नहीं हूँ मैं
क्या तुम ये कह रहे हो कि इंसाँ नहीं हूँ मैं
बेताब अमरोहवी
ग़ज़ल
लड़खड़ाती हवा रोज़ कहती है क्या शहर वालो सुनो
एक पौदा कोई आज फिर जल गया शहर वालो सुनो
बाक़र नक़वी
ग़ज़ल
न हो सकेगा वो रम्ज़-आश्ना-ए-कैफ़-ए-हयात
जो क़ल्ब चश्म-ए-तग़ाफ़ुल का राज़दार न हो