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ग़ज़ल
अक़्ल की हर्ज़ा-सराई ज़ेहन की आवारगी
मुझ को सब कुछ मिल गया तुझ से जुदा होने के बा'द
कबीर अहमद जायसी
ग़ज़ल
कैसी मुसीबत है ये गुल को ख़मोशी का शौक़
बुलबुल-ए-बेताब को हर्ज़ा-सराई का इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बहुत मसरूफ़ हैं अहल-ए-जहाँ हर्ज़ा-सराई में
अब आशोब-ए-सुख़न में बे-हिसी को कौन लिक्खेगा
हिजाब अब्बासी
ग़ज़ल
रिश्तों की आब-यार थी आँखों में गर्म-ताज़
फिर भी सरा-ए-लुत्फ़ का दरिया हरा न था