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ग़ज़ल
जिन रहबरों के दिल में हर इक का ख़याल था
वो नौ-रतन नहीं रहे दरबारियों के पास
अब्दुर्रज़्ज़ाक़ दिल
ग़ज़ल
हर-दिल-अज़ीज़ आप भी बन जाएँगे हुज़ूर
ख़ोल-ए-अना से अपने निकल कर तो देखिए
ख़्वाजा रफ़अत हुसैन नैयर
ग़ज़ल
हर-दिल-अज़ीज़ वो भी है हम भी हैं ख़ुश-मिज़ाज
अब क्या बताएँ कैसे हमारी नहीं बनी
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
ग़ज़ल
ज़िंदगी चाहे तो हो जा तू अज़ीज़-ए-हर-दिल
ज़ाइक़े में शकर-ओ-शीर से आगे बढ़ जा
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
हर आँख लहू सागर है मियाँ हर दिल पत्थर सन्नाटा है
ये गंगा किस ने पाटी है ये पर्बत किस ने काटा है
अज़ीज़ क़ैसी
ग़ज़ल
हम इंसाँ हैं दिल-ए-इंसाँ को तड़पाना नहीं आता
करम की शान रखते हैं सितम ढाना नहीं आता