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ग़ज़ल
अगर ये है तिरे दामन की हश्र-ओ-नश्र मियाँ
ज़मीं पे ख़ाक हमारा ग़ुबार ठहरेगा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ऐमन अमृतसरी
ग़ज़ल
हुदूद-ए-अर्श-ओ-अज़ल मरहलात-ए-हश्र-ओ-अबद
हैं सब ये सिलसिला-ए-शरह-ए-दास्तान-ए-मजाज़
आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल
मिटा सकते नहीं हश्र-ओ-क़यामत भी ये दो चीज़ें
मिरे सज्दे रहेंगे और उन का आस्ताँ बाक़ी
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
ख़याल-ए-हश्र ओ फ़िक्र-ए-नश्र ऐ 'सीमाब' ला-हासिल
कि है तक़दीर में जो कुछ बहर-तक़दीर देखेंगे
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
खुला हर मंज़र-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र आहिस्ता आहिस्ता
छटा आख़िर ग़ुबार-ए-रहगुज़र आहिस्ता आहिस्ता