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ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-हसरत-ए-दिल ज़ुल्म भी ढाना नहीं आता
वो क्या तस्कीन देंगे जिन को तड़पाना नहीं आता
रशीद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को
अज़ीज़ क्यूँ न रखें ज़िंदगी के हासिल को
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
उमीद-ए-मेहर पर इक हसरत-ए-दिल हम भी रखते थे
तमन्ना वस्ल की ऐ माह-ए-कामिल हम भी रखते थे
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है