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ग़ज़ल
बोस-ओ-कनार-ओ-वस्ल-ए-हसीनाँ है ख़ूब शग़्ल
कमतर बुज़ुर्ग होंगे ख़िलाफ़ इस ख़याल के
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मैं ने सारी दुनिया में बस एक हसीना देखी है
बाक़ी कोई हुस्न नहीं है चर्बा है शहज़ादी का
अहमद अज़ीम
ग़ज़ल
खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल
क्या करें बज़्म-ए-हसीनाँ में 'तअश्शुक़' जा कर
न रहीं क़ाबिल-ए-नज़्ज़ारा हमारी आँखें
तअशशुक़ लखनवी
ग़ज़ल
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
इक हसीना की सियह-ज़ुल्फ़ों पे झाला यूँ लगे
नाग काला छग के जैसे पी गया है बर्फ़ बर्फ़