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ग़ज़ल
दम-ए-तौफ़ किरमक-ए-शम्अ ने ये कहा कि वो असर-ए-कुहन
न तिरी हिकायत-ए-सोज़ में न मिरी हदीस-ए-गुदाज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये फ़लक ये माह-ओ-अंजुम ये ज़मीन ये ज़माना
तिरे हुस्न की हिकायत मिरे इश्क़ का फ़साना
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मेरी चुप रहने की आदत जिस कारन बद-नाम हुई
अब वो हिकायत आम हुई है सुनता जा शरमाता जा
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
चश्म-ए-ख़ामोश की बाबत मुझे मा'लूम न था
ये भी है हर्फ़-ओ-हिकायत मुझे मा'लूम न था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
वो अपने आप न समझेगा तेरे दिल में है क्या
ख़लिश को हर्फ़ बना हर्फ़ को हिकायत कर