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ग़ज़ल
'हिजाब' इस शहर-ए-ना-पुरसाँ में सब झगड़ा अना का है
सुरूर-ए-ख़ुद-परस्ती में ख़ुदी को कौन लिक्खेगा
हिजाब अब्बासी
ग़ज़ल
हिजाब अब्बासी
ग़ज़ल
अगर अहद-ए-वफ़ा से तू भी फिर जाए मोहब्बत में
'हिजाब' उस शोख़ को मालूम हो जाए दग़ा देना
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
'हिजाब' पैहम ये कह रहा है गुनाहगारों ने जोश-ए-रहमत
मुबारक ऐ आसियो मुबारक शफ़ी-ए-रोज़-ए-जज़ा की आमद
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
शाहजहाँ जाफ़री हिजाब अमरोहवी
ग़ज़ल
है सौ अदाओं से उर्यां फ़रेब-ए-रंग-ए-अना
बरहना होती है लेकिन हिजाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
वाँ वो ग़ुरूर-ए-इज्ज़-ओ-नाज़ याँ ये हिजाब-ए-पास-ए-वज़अ
राह में हम मिलें कहाँ बज़्म में वो बुलाए क्यूँ