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ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
नमाज़ें मुस्तक़िल पहचान बन जाती है चेहरों की
तिलक जिस तरह माथे पर कोई हिन्दू लगाता है
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
हिन्दू हैं बुत-परस्त मुसलमाँ ख़ुदा-परस्त
पूजूँ मैं उस किसी को जो हो आश्ना-परस्त
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
तिरा दम भरते हैं हिन्दू अगर नाक़ूस बजता है
तुझे भी शैख़ ने प्यारे अज़ाँ दे कर पुकारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
ख़ाल-ए-हिन्दू हैं परस्तिश के लिए आए हैं
पुतलियाँ आँखों की दो बुत हैं कलीसा है वो रुख़
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ख़त बढ़ा काकुल बढ़े ज़ुल्फ़ें बढ़ीं गेसू बढ़े
हुस्न की सरकार में जितने बढ़े हिन्दू बढ़े
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
बाज़ार से गुज़रे है वो बे-पर्दा कि उस को
हिन्दू का न ख़तरा न मुसलमान का डर है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मैं ने देखा नहीं हिन्दू या मुसलमान हो तुम
हाँ फ़क़त इतना है देखा कि इक इंसान हो तुम