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ग़ज़ल
हैं दोनों नूर के टुकड़े मगर हिफ़्ज़-ए-मरातिब से
सितारों को शह-ए-ख़ावर से टकराया नहीं जाता
सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर
ग़ज़ल
मुख़ालिफ़ को तिरे क्यूँकर बुलंदी-ए-मरातिब हो
बग़ावत से नतीजा उस का पस्ती है गुरु-नानक
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
हिफ़्ज़-ए-नामूस-ए-मोहब्बत के लिए दीवाने
अपने दिल में लिए मरने की लगन उठ्ठे हैं