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ग़ज़ल
ऐ शम्अ'-ए-हुस्न-ओ-ख़ूबी दिल है वही हमारा
महफ़िल में आप जिस को परवाना जानते हैं
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
हुस्न-ओ-ख़ूबी से जो चलते हैं रज़ा-ए-हक़ पर
हैं वही लोग जिन्हें दोनों जहाँ मिलते हैं
अज़ीज़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
साहिर सियालकोटी
ग़ज़ल
नवर्द-ए-हुस्न-ओ-तासीर-ओ-बुनत-कारी के बल के बा'द
हज़ारों साल में चश्म-ए-मोअन्नस झील होती है
तौहीद ज़ेब
ग़ज़ल
देखने आए थे हम नाज़-ओ-नियाज़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
वर्ना मरना और जीना ये भी कोई काम था