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ग़ज़ल
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
समझ पाए नहीं देखे बग़ैर उस का नज़र आना
मशक़्क़त कम से कम की थी मगर उजरत ज़ियादा है
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
अज़ाब-ए-गर्द-ए-ख़िज़ाँ भी न हो बहार भी आए
इस एहतियात से अज्र-ए-वफ़ा न माँगे कोई