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ग़ज़ल
कभी भूके पड़ोसी की ख़बर तो ली नहीं उस ने
मगर करने वो उमरा और हज हर साल जाता है
अब्दुल हफ़ीज़ साहिल क़ादरी
ग़ज़ल
आप एहसाँ मत जताएँ हज्ज-ओ-'उम्रा भेज कर
ज़िंदगी दे कर भी माँ का हक़ अदा होता नहीं
रहबर प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले