aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ".arvi"
कहाँ किसी की नज़र है तिरी नज़र की तरहजो काम दिल का भी करती चले जिगर की तरह
हज़ार ज़ख़्म हैं दिल पर जिगर पे खाए हुएमगर मिले जो किसी से तो मुस्कुराए हुए
न आना था न आया आने वालागया दुनिया से आख़िर जाने वाला
देखा है इक नज़र उन्हें अंजाम जो भी होक़िस्मत में अपनी ऐ दिल-ए-नाकाम जो भी हो
दयार-ए-इश्क़ में वाइ'ज़ ख़िरद का काम नहींउधर न भूल के जाना वो राह-ए-आम नहीं
चाहे जो हाल भी हो उन की नज़र होने तकहम जिए जाएँगे आहों में असर होने तक
तिरी बर्बादियों का ज़िक्र बज़्म-ए-दिल-बराँ तक हैकहाँ की बात है ऐ दिल मगर पहुँची कहाँ तक है
वैसे इस आब-ओ-गिल में क्या न हुआकोई बंदा मगर ख़ुदा न हुआ
न क़हक़हा न तबस्सुम न अश्क पैहम हैजहाँ पे हम हैं वहाँ कुछ अजीब आलम है
ज़ुल्फ़-ए-शब का साया भी किस क़दर घनेरा हैदिल से उन की महफ़िल तक रास्ता अंधेरा है
दाग़-ए-दिल अपना किसी तरह दिखाए न बनेऔर चाहूँ जो छुपाना तो छुपाए न बने
इस तरह दर्द का तुम अपने मुदावा करनायाद-ए-माज़ी को चराग़-ए-रह-ए-फ़र्दा करना
यूँ जवानी आई रुख़्सत हो गईआइना देखा तो हैरत हो गई
ऐसा नहीं कोई कि शनासा कहें जिसेमिलता कहाँ है कोई हम अपना कहें जिसे
तू मै-कदा में इक ऐसा निज़ाम पैदा करकि सब के लब को जो पहुँचे वो जाम पैदा कर
नज़र में ख़िज़्र कोई है न इब्न-ए-मरियम हैअजब बला में गिरफ़्तार इब्न-ए-आदम है
आप की मुझ पर इनायत हो गईदूर सब अपनी शिकायत हो गई
शिकस्ता साज़-ए-मोहब्बत की इक सदा हूँ मैंजो रह गई है लरज़ कर वो इल्तिजा हूँ मैं
मुझ को तुम से नहीं गिला कोईदर्द-ए-दिल की भी है दवा कोई
कोई शिकवा न शिकायत न गिला रक्खा हैतेरी महफ़िल में यही पास-ए-वफ़ा रक्खा है
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