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ग़ज़ल
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मोहब्बत अस्ल में 'मख़मूर' वो राज़-ए-हक़ीक़त है
समझ में आ गया है फिर भी समझाया नहीं जाता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
बहुत बुरे हो मिरी दिखावे की नींद को भी तुम अस्ल समझे
कहीं से सीखो पियार करना मुझे जगाओ मुझे मनाओ
आमिर अमीर
ग़ज़ल
क्या रम्ज़ जाननी है तुझे अस्ल-ए-इश्क़ की?
जो तुझ में उस बदन के सिवा है, ये इश्क़ है
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है
इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के ब'अद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
नज़र नहीं तो मिरे हल्क़ा-ए-सुख़न में न बैठ
कि नुक्ता-हा-ए-ख़ुदी हैं मिसाल-ए-तेग़-ए-असील
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बाहर का धन आता जाता अस्ल ख़ज़ाना घर में है
हर धूप में जो मुझे साया दे वो सच्चा साया घर में है