aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुएहम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं
वो जो ता'मीर होने वाली थीलग गई आग उस इमारत में
तुम तो यारो अभी से उठ बैठेशहर में रात जागती है अभी
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजेइक आग का दरिया है और डूब के जाना है
सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन कीवर्ना ये फ़क़त आग बुझाने के लिए हैं
आग दोज़ख़ की भी हो जाएगी पानी पानीजब ये आसी अरक़-ए-शर्म से तर जाएँगे
अजीब दुख है हम उस के हो कर भी उस को छूने से डर रहे हैंअजीब दुख है हमारे हिस्से की आग औरों में बट रही है
यार हवा से कैसे आग भड़क उठती हैलफ़्ज़ कोई अँगारा कैसे हो सकता है
चूँ शम-ए-सोज़ाँ चूँ ज़र्रा हैराँ ज़ मेहर-ए-आँ-मह बगश्तम आख़िरन नींद नैनाँ न अंग चैनाँ न आप आवे न भेजे पतियाँ
शम्अ' जिस आग में जलती है नुमाइश के लिएहम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं
इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैंये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते
हर एक लहज़ा यही आरज़ू यही हसरतजो आग दिल में है वो शेर में भी ढल जाए
जब तवक़्क़ो' ही उठ गई 'ग़ालिब'क्यूँ किसी का गिला करे कोई
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगामैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा
किस तरह लोग चले जाते हैं उठ कर चुप-चापहम तो ये ध्यान में लाते हुए मर जाते हैं
ऐ दिल-ए-शेफ़्ता में आग लगाने वालेरंग लाया है ये लाखे का जमाना तेरा
दिल जो है आग लगा दूँ उस कोऔर फिर ख़ुद ही हवा दूँ उस को
मैं फूल हूँ तो फूल को गुल-दान हो नसीबमैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
मुझ पे छा जाओ किसी आग की सूरत जानाँऔर मिरी ज़ात को सूखा हुआ जंगल कर दो
हम इस मोड़ से उठ कर अगले मोड़ चलेउन को शायद उम्र लगेगी आने में
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