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ग़ज़ल
वाँ वो ग़ुरूर-ए-इज्ज़-ओ-नाज़ याँ ये हिजाब-ए-पास-ए-वज़अ
राह में हम मिलें कहाँ बज़्म में वो बुलाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कूच अपना उस शहर तरफ़ है नामी हम जिस शहर के हैं
कपड़े फाड़ें ख़ाक-ब-सर हों और ब-इज़्ज़-ओ-जाह चलें
जौन एलिया
ग़ज़ल
वही है शौक़ का जज़्बा वही है इज़्ज़-ओ-नियाज़
कि देख लेना भी तुम को है बंदगी की तरह
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
गदा ने छोड़ के दुनिया को नक़्द-ए-दीं पाया
भला ये लुत्फ़ कहाँ शह के इज़्ज़-ओ-जाह में है
जोर्ज पेश शोर
ग़ज़ल
जो इंग्लिस्तान की सी बरतरी ऐ हिन्द चाहे तू
मिला कर अपने फ़िर्क़ों को ये इज़्ज़-ओ-शान पैदा कर
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
थोड़ी सी वज़' ओढ़ ली और वज़'-दार हो गए
अस्हाब-ए-इज़-ओ-जाह में हम भी शुमार हो गए