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ग़ज़ल
रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना
कोई सूखा पेड़ मिले तो उस से लिपट के रो लेना
बशीर बद्र
ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
लग चुके हैं दामनों पर जितने रुस्वाई के दाग़
इन को आँसू क्या समुंदर तक भी धो सकता नहीं