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ग़ज़ल
कहाँ मेरे दिल की हसरत, कहाँ मेरी ना-रसाई
कहाँ तेरे गेसुओं का, तिरे दोश पर बिखरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
किसी की ज़ुल्फ़ बिखरे और बिखर कर दोश पर आए
दिल-ए-सद-चाक उलझे और उलझ कर शाना हो जाए
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
कुछ भी हो क़त्ल-गाह में हुस्न-ए-बदन का है ज़रर
हम न कहीं से आएँगे दोश पे सर लिए बग़ैर