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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक
उस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
कहीं और बाँट दे शोहरतें कहीं और बख़्श दे इज़्ज़तें
मिरे पास है मिरा आईना मैं कभी न गर्द-ओ-ग़ुबार लूँ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
काश अब बुर्क़ा मुँह से उठा दे वर्ना फिर क्या हासिल है
आँख मुँदे पर उन ने गो दीदार को अपने आम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अब इस को कुफ़्र मानें या बुलंदी-ए-नज़र जानें
ख़ुदा-ए-दो-जहाँ को दे के हम इंसान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है