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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
घरों की तर्बियत क्या आ गई टी-वी के हाथों में
कोई बच्चा अब अपने बाप के ऊपर नहीं जाता
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
ख़ता-मुआफ़ तिरा अफ़्व भी है मिस्ल-ए-सज़ा
तिरी सज़ा में है इक शान-ए-दर-गुज़र फिर भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
उफ़ ये ज़मीं की गर्दिशें आह ये ग़म की ठोकरें
ये भी तो बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता के शाने हिला के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी
तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी
गुलज़ार
ग़ज़ल
उफ़ ये सन्नाटा कि आहट तक न हो जिस में मुख़िल
ज़िंदगी में इस क़दर हम ने सुकूँ पाया न था