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ग़ज़ल
ग़म-ए-उम्र-ए-मुख़्तसर से अभी बे-ख़बर हैं कलियाँ
न चमन में फेंक देना किसी फूल को मसल कर
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
बैठे बैठे फेंक दिया है आतिश-दान में क्या क्या कुछ
मौसम इतना सर्द नहीं था जितनी आग जला ली है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
बर्फ़ीली रुत की तेज़ हवा क्यूँ झील में कंकर फेंक गई
इक आँख की नींद हराम हुई इक चाँद का अक्स ख़राब हुआ
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
उतार फेंक दे ख़ुश-फ़हमियों के सारे ग़िलाफ़
जो शख़्स भूल गया उस को याद क्या रखना
इफ़्तिख़ार नसीम
ग़ज़ल
रोज़ मैं लौटता हूँ ख़ुद में नदामत के साथ
रोज़ मुझ को कहीं फेंक आते हैं जज़्बात मिरे
इस्माईल राज़
ग़ज़ल
जो तुम हो पास तो कहता है मुझ को चीर के फेंक
वो दिल जो वक़्त-ए-दुआ बे-ज़बान लगता है
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
बरखा की तो बात ही छोड़ो चंचल है पुर्वाई भी
जाने किस का सब्ज़ दुपट्टा फेंक गई है धानों पर