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ग़ज़ल
ऐसे शख़्स को मीर बनाया जो बस ख़्वाब दिखाता था
बस्ती के लोगों ने अपना-आप मुक़द्दर फोड़ लिया
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तकल्लुफ़ क्या जो खोई जान-ए-शीरीं फोड़ कर सर को
जो थी ग़ैरत तो फिर ख़ुसरव से होता कोहकन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
आँखों को फोड़ डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ
या इश्क़ की पकड़ कर गर्दन मरोड़ डालूँ