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ग़ज़ल
हमारी ख़ाक के ज़र्रे फ़ना हो कर भी चमकेंगे
उरूज अपना दिखाएँ गे ये नज्म-ए-आसमाँ हो कर
पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़
ग़ज़ल
वो अपना वा'दा निबाहें गे है गुमाँ हम को
फ़रेब देते हैं ख़ुद को फ़रेब-कार हैं हम